Ground Zero Movie Review: कश्मीर के संवेदनशील मुद्दों और आतंकवाद की कहानी को पर्दे पर उतारती फिल्म “ग्राउंड जीरो” ने दर्शकों के सामने एक जरूरी विषय को रखने की कोशिश की है। इमरान हाशमी की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म असल जिंदगी की घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन क्या यह दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ पाती है? आइए जानते हैं पूरी रिव्यू में।
कहानी का सार: असलियत की झलक
फिल्म की कहानी 2001 के संसद हमले के पीछे के मास्टरमाइंड गाजी बाबा को खत्म करने के मिशन पर आधारित है। इमरान हाशमी बीएसएफ अधिकारी नरेंद्र नाथ धर दुबे का किरदार निभाते हैं, जो आतंकवादियों के खिलाफ जंग में उतरते हैं। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे कश्मीर में युवाओं को पैसे और आजादी के झूठे वादों से आतंकवाद की ओर धकेला जाता है। साथ ही, “पिस्तौल गिरोह” नामक आतंकी गुट के नेता को पकड़ने की कोशिशें फिल्म का मुख्य प्लॉट हैं।
इमरान हाशमी का अभिनय: गंभीर और प्रभावशाली
इमरान हाशमी ने इस फिल्म में अपने एक्टिंग के जौहर दिखाए हैं। वह एक संजीदा और दृढ़ बीएसएफ अधिकारी के किरदार में पूरी तरह से डूबे नजर आते हैं। उनकी आवाज़, बॉडी लैंग्वेज और एक्सप्रेशन किरदार को विश्वसनीय बनाते हैं। हालांकि, फिल्म में उनकी पत्नी के रोल में साई तम्हाणकर का स्क्रीन टाइम सीमित है, जिससे उनका किरदार उभर नहीं पाता। वहीं, जोया हुसैन (नादिला) और युवा अभिनेता हुसैन के रोल ने कहानी में भावनात्मक गहराई जोड़ी है।
फिल्म की ताकत और कमजोरियां
पॉजिटिव पॉइंट्स:
- रियलिस्टिक पोर्ट्रेयल: कश्मीर के आतंकवाद और स्थानीय युवाओं के शोषण को दिखाने का साहसिक प्रयास।
- दिशा निर्देशन: एक्शन सीक्वेंस और लोकेशन्स का चुनाव फिल्म को ऑथेंटिक बनाता है।
- इमरान का शानदार प्रदर्शन: उनकी एक्टिंग फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है।
नेगेटिव पॉइंट्स:
- स्लो पेसिंग: पहला हाफ बेहद धीमा है, जिससे दर्शकों का धैर्य टूट सकता है।
- इमोशनल कनेक्ट की कमी: संवेदनशील विषय होने के बावजूद कहानी दिल को छूने में नाकाम रहती है।
- खिंचे हुए दृश्य: कई सीन अनावश्यक रूप से लंबे बनाए गए हैं।
संवेदनशीलता पर सवाल?
फिल्म में पहलगाम त्रासदी जैसे मुद्दों को छुआ गया है, जो कुछ दर्शकों के लिए परेशान करने वाला हो सकता है। हालांकि, निर्देशक ने इसे संतुलित तरीके से पेश करने की कोशिश की है।
फाइनल वर्ड: क्या देखने लायक है?
ग्राउंड जीरो एक जरूरी विषय पर बनी फिल्म है, जो आतंकवाद की जटिलताओं को समझने का मौका देती है। इमरान हाशमी का अभिनय और कहानी का रियलिस्टिक एंगल फिल्म को विशेष बनाते हैं। लेकिन, स्लो पेसिंग और इमोशनल गहराई की कमी के चलते यह पूरी तरह से प्रभावित नहीं कर पाती। यदि आप वार ड्रामा और रियल-लाइफ स्टोरीज के शौकीन हैं, तो एक बार देख सकते हैं।
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